बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-4 भूगोल बीए सेमेस्टर-4 भूगोलसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-4 भूगोल - सरल प्रश्नोत्तर
अध्याय - 1
आर्थिक भूगोल : अर्थ, अवधारणा एवं उपागम
(Economic Geography : Meaning,
Concept and Approaches)
आर्थिक भूगोल मानव भूगोल की सशक्तम् शाखा है। जन सामान्य के अधिकांश कार्य अर्थ से प्रेरित होते हैं। आर्थिक भूगोल विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में आर्थिक तन्त्र (कृषि, पशुचारण, खनन, उद्योग, सेवाएँ इत्यादि), आर्थिक विकास की प्रक्रिया, विकास स्तर एवं तत्सम्बन्धी भूवैन्यासिक संगठन का अध्ययन करता है। विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में आर्थिक कार्यकलाप का समुच्चयित स्वरूप, उनमें निवास करने वाले मानव समाज के गुणात्मक जीवन स्तर में परिलक्षित होता है। गुणात्मक जीवन स्तर का तात्पर्य ऐसे जीवन स्तर से है जिसमें जीवन की मौलिक आवश्यकताओं (भोजन, वस्त्र, आवास, शिक्षा, स्वास्थ्य) एवं उच्च आवश्यकताओं (मनोरंजन, कला-कौशल) की पूर्ति के साथ-साथ स्वस्थ एवं स्फूर्तिदायक प्राकृतिक-जैविक एवं समाजिक-सांस्कृतिक पर्यावरण सुलभ हो। स्पष्ट है कि गुणात्मक जीवन स्तर आर्थिक विकास की दीर्घकालीन प्रक्रिया का परिणाम होता है। इस विकास प्रक्रिया के क्षेत्र में उपलब्ध संसाधनों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। संसाधन प्राकृतिक-जैविक वातावरण से मानव द्वारा विकसित प्राविधिकी के सहारे उत्पन्न होते हैं। इस प्रकार संसाधन आधार पर प्रविधि सम्पन्न मानव की क्रियाशीलता के अनुरूप ही आर्थिक विकास की प्रक्रिया अग्रसर होती है।
अतः स्पष्ट है कि आर्थिक भूगोल के अन्तर्गत भूतल के विभिन्न प्रदेशों में आर्थिक विकास एवं तज्जनित गुणात्मक जीवन स्तर का अध्ययन सम्पूर्ण भौगोलिक वातावरण-तन्त्र के सन्दर्भ तथा प्राविधिक विकास-क्रम के प्रसंग में किया जाता है।
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